कुण्डलिया छन्द की रचना

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आपके सम्मुख प्रस्तुत है कुण्डलिया छन्द की रचना:-
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धरणी  पर  जीवन हुआ, इक  चौसर  का खेल।

शकुनि मामा  खेल  रहे, कभी   न  होता  जेल।।

कभी   न   होता   जेल,छली धूर्त खिलाड़ी को।

लाँछन नित ही लगे,अबल दीन भिखारी को।।

"ऋतुपर्ण" कहे कहो,हुई  क्यों पातक करनी।

साँपों का यह निलय,बनी क्यों पावन धरणी!


 ©ऋतुपर्ण


शब्दार्थ-
१)धरणी:-धरती
२)चौसर/चौपड़:-एक प्राचीन युग का जुए का खेल जो आज भी लोगों के बीच प्रचलित है।
३)लाँछन:-किसी के सिर दोष मढ़ना।
४)पातक:-पापकर्म करने वाला।
५)व्याल:-साँप
६)पावन:-पवित्र

सविनय धन्यवाद🙏

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