छप्पय छन्द छः चरणों का मात्रिक छन्द है।इसमें रोला के चार तथा अंतिम दो चरण उल्लाला की होती हैं।रोला में ११-१३ पर यति (विराम) होती है,जबकि उल्लाला में १५-१३ पर। ★ध्यान देने योग्य बिंदु- ●रोला में गण क्रम पर नहीं कलन पर ध्यान देना होता है। इसके विषय चरण(प्रथम और तृतीय) में १३ मात्राएं रखे जाते है सम चरण(द्वितीय और चतुर्थ) में ११ मात्राएँ रखे जाते हैं।और चरणान्त में दो गुरु अनिवार्य है। विषम चरण का कलन क्रम-चौकल चौकल त्रिकल(४ ४ ३) और सम चरण का क्रम- त्रिकल द्विकल चौकल चौकल(३ २ ४ ४) ●उल्लाला में १५-१३ पर यति होती है।यहाँ विषम और सम चरण में, १३वीं और ११वीं मात्रा क्रमशः लघु रखी जाती है। यह मौलिक रचना आपके सम्मुख समीक्षार्थ प्रस्तुत है। मातृभूमि के अर्थ,अभय हो शीश चढ़ाया। निज जीवन जो त्याग,राग राष्ट्र हेतु गाया। बलिवेदी पर चढ़े,देश की जय-जय गाते। ऐसे अमर सपूत,युगों में विरले आते। उन बलिदानी का त्याग भी,होता चिर-स्मरणीय है। उनकी कृति भावी के लिए,निश्चित अनुकरणीय है। जिसके उर में प्रेम,और स्वातंत्र्य बसा हो। देश हितैषी कार्य की प्रबल बहु ईप्सा हो। लहू शिरा बस राष्ट्र ...
॥आल्हा छन्द॥ (बाल-कविता) बापू के जन्मदिवस दिन ही,एक नायक जन्मे महान। इतिहास उन्हें दुहराता है,आओ करें सभी गुणगान। शान्ति क्रांति थी दोनों जिसमें, होता भय से अरि लाचार। सादा परिधान पहनते थे,पर रखते वे उच्च विचार। यह उनका प्रसिद्ध नारा था,जय जवान और जय किसान। हो कृषि मूलाधार देश की,एवं जवान रक्षक महान। भारत पर सर्वस्व निछावर,किया बूंद-बूंद रक्त-स्वेद! उनके कथनी औ करनी में,किंचित मात्र नहीं थे भेद। छोटी उनकी कदकाठी थी,पर वे स्वयं थे कर्मवीर। भाँपते दीनता से अपनी ,दीन दलित सबके ही पीड़। भारत के नेता थे ऐसे,जिनके शब्दों में थे ज्वाल। "भारत छोड़ो" में बोला था,मरो नहीं, मारो बन काल! चौसठ के हिन्द-पाक रण में,सेना पहुँचा दी लाहौर। ऐसे दृढ़ संकल्पित जन थे,भयाकुल हो बदला न तौर। याद रखो नन्हे "नन्हे" के,एक से एक बढ़ आदर्श। जीवन मे अनुसरण करो रे,उनको ...
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