हा ! हा ! चित्त को बेधता है, बेधता है मर्म को। धिक्कार है सौ बार उस दुष्कर्म को, उस धर्म को। सिखला रहे जो खींचना युवती सती के लाज को। धिक्कार है उस मनुज को भी और सभ्य-समाज को। है पनपते ये कीट नित- नित ढीठ होते जा रहे। वे सभ्यता के अहितकर हैं, सभ्यता को खा रहे। बन घूमता है भेड़ियाँ अब भेड़ के ही स्वांग में। हो सावधान सभी! नहीं तो नोच खाय छलाँग में। श्रृंगाल ज्यों मृत जीव खाता है बड़े ही चाव से। छि:! आज मानव नोंचते है मनुज को उस भाव से। दुष्कर्म की यह बात ऐसे तीव्र होती जा रही। अब प्रेम से भी देखने में आप लज्जा आ रही। कुछ मनुज ने ही है किया नत मस्तकें निज जाति की । लूटा दिया सत्कर्म, मानव- धर्म, थाती जाति की। ओ जागिये धर्मेश सारे राज कैसे हो...
॥आल्हा छन्द॥ (बाल-कविता) बापू के जन्मदिवस दिन ही,एक नायक जन्मे महान। इतिहास उन्हें दुहराता है,आओ करें सभी गुणगान। शान्ति क्रांति थी दोनों जिसमें, होता भय से अरि लाचार। सादा परिधान पहनते थे,पर रखते वे उच्च विचार। यह उनका प्रसिद्ध नारा था,जय जवान और जय किसान। हो कृषि मूलाधार देश की,एवं जवान रक्षक महान। भारत पर सर्वस्व निछावर,किया बूंद-बूंद रक्त-स्वेद! उनके कथनी औ करनी में,किंचित मात्र नहीं थे भेद। छोटी उनकी कदकाठी थी,पर वे स्वयं थे कर्मवीर। भाँपते दीनता से अपनी ,दीन दलित सबके ही पीड़। भारत के नेता थे ऐसे,जिनके शब्दों में थे ज्वाल। "भारत छोड़ो" में बोला था,मरो नहीं, मारो बन काल! चौसठ के हिन्द-पाक रण में,सेना पहुँचा दी लाहौर। ऐसे दृढ़ संकल्पित जन थे,भयाकुल हो बदला न तौर। याद रखो नन्हे "नन्हे" के,एक से एक बढ़ आदर्श। जीवन मे अनुसरण करो रे,उनको ...
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