दुष्कर्म के घटनाओंं पर
हा ! हा ! चित्त को बेधता है, बेधता है मर्म को।
धिक्कार है सौ बार उस दुष्कर्म को, उस धर्म को।
सिखला रहे जो खींचना युवती सती के लाज को।
धिक्कार है उस मनुज को भी और सभ्य-समाज को।
है पनपते ये कीट नित- नित ढीठ होते जा रहे।
वे सभ्यता के अहितकर हैं, सभ्यता को खा रहे।
बन घूमता है भेड़ियाँ अब भेड़ के ही स्वांग में।
हो सावधान सभी! नहीं तो नोच खाय छलाँग में।
श्रृंगाल ज्यों मृत जीव खाता है बड़े ही चाव से।
छि:! आज मानव नोंचते है मनुज को उस भाव से।
दुष्कर्म की यह बात ऐसे तीव्र होती जा रही।
अब प्रेम से भी देखने में आप लज्जा आ रही।
कुछ मनुज ने ही है किया नत मस्तकें निज जाति की ।
लूटा दिया सत्कर्म, मानव- धर्म, थाती जाति की।
ओ जागिये धर्मेश सारे राज कैसे हो रहे!
हे अबल के रक्षक प्रणेता, न्यायदाता सो रहे?
गांडीवधारी श्रेष्ठ अर्जुन लक्ष्य का भेदन करो।
इन निंद्य पातक पामरों के कंठ अब छेदन करो।
हे भीम ! जागो द्रौपदी फिर नग्न की है जा रही।
तुमको भला इस काल भी क्यों नींद प्यारी आ रही!
ओ जागिये हे कृष्ण प्रभुवर! आज सब क्यों सो रहे?
सब सो रहे या मौन, हत हो चकित, चिंतित हो रहे?
जागो तुम्हीं हे याज्ञसेनी निज बलों को जोड़ कर।
अबला सबल हो तुम;उठो अवलंब सबका छोड़ कर।
तेरे रुधिर में भी अनल की लू लपट औ' ताप है।
तेरे करों में दंड है तेरे करों में शाप है।
तेरी भुजाएं सुमन भी ,तेरी भुजाएँ ढाल भी।
तेरे हृदय में नेह है तेरे हृदय में काल भी।
जागो तुम्हीं रक्षार्थ-निज, बल-शक्तियों को टेरकर।
दुष्कर्मियों को दंड दो,दुष्कर्म करते घेरकर।
©ऋतुपर्ण
अंदर तक घात करने वाले शब्द है आपके। सच का आइयना दिखा रहे है। काबिल-ए-तारीफ
ReplyDeleteआपका सादर धन्यवाद😊
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