कुण्डलिया छन्द की रचना
दोस्तों!आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर।मैं ब्लॉगर पर बिल्कुल नया हूँ और इसके interface से बिल्कुल अनभिज्ञ हूँ तो हो सकता है आपको मेरी प्रस्तुति के तरीकों में कमियां देखने को मिले।यह मेरा प्रथम प्रेषण जो एक विशेष रचना है जो आप सभी के साथ साझा करना चाहूंगा।अच्छा लगे तो प्रतिक्रिया जरूर लिखें और प्रस्तुति को सुगठित करने का सुझाव बेहिचक दें।आभार आपके सम्मुख प्रस्तुत है कुण्डलिया छन्द की रचना:- ----------------------------------------------------- - ------- धरणी पर जीवन हुआ, इक चौसर का खेल। शकुनि मामा खेल रहे, कभी न होता जेल।। कभी न होता जेल,छली धूर्त खिलाड़ी को। लाँछन नित ही लगे,अबल दीन भिखारी को।। "ऋतुपर्ण" कहे कहो,हुई क्यों पातक करनी। साँपों का यह निलय,बनी क्यों पावन धरणी! ©ऋतुपर्ण शब्दार्थ- १)धरणी:-धरती २)चौसर/चौपड़:-एक प्राचीन युग का जुए का खेल जो आज भी लोगों के बीच प्रचलित है। ३)लाँछन:-किसी के सिर दोष मढ़ना। ४)पातक:-पापकर्म करने वाला। ५)व्याल:-साँप ६)पावन:-पवित्र सविनय धन्यवाद🙏