नील जलद

 नील जलद ओ नील जलद !

नभ भर उड़ते क्यों पर पसार?

पंखहीन  आकृति  विहीन

 हो जाते लुकछिप बार-बार!


क्षितिज असीम ,तुम लघु क्षीण,

चलते थकते  क्या नहीं पाँव?

किसे खोजने निकल चले हो,

जाते क्योंकर तुम शहर-गाँव?

नील जलद ओ  नील  जलद !

नभ भर उड़ते क्यों पर पसार?


नील नदी  के  मीन  चपल,

उर में रखकर अनुराग-भार ।

प्रेम  लुटा  आने  को  क्या,

जाते हो सब के द्वार-द्वार?

नील जलद ओ नील जलद !

नभ भर उड़ते क्यों पर पसार?


लेकर  आते  हो  अथवा,

विरह मिलन के प्रेम-उपहार।

या  पलकें थाम  न  पाती,

तेरे अपने  दुःख  के  भार?

नील जलद ओ नील जलद !

नभ भर उड़ते क्यों पर पसार?


-ऋतुपर्ण

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